मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बाबत पहल की है। उन्होंने इस बाबत उप्र की संभावनाओं का जिक्र करते हुए केंद्रीय उर्वरक एवं रसायन मंत्री सदानंद गौड़ा को करीब माह भर पहले पत्र भी लिखा है। अब गेंद केंद्र के पाले में हैं।
दरअसल भारतीय दवा उद्योग का दुनिया में तीसरा नंबर है। बावजूद तमाम दवाओं के कच्चे माल के लिए भारत चीन पर निर्भर है। कुछ दवाओं के कच्चे माल के संदर्भ में तो यह निर्भरता 80 से 100 फीसद तक है। कोरोना के संक्रमण की शुरुआत चीन से हुई। स्वाभाविक रूप से कच्चे माल का संकट भी हुआ। इनके मंगाने के खतरे अलग से।
लिहाजा नीति आयोग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्र के संबंधित विभागों ने तय किया कि क्यों न देश को दवाओं और चिकित्सकीय उपकरणों के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए देश में ही फार्मा और फार्मा उपकरण बनाने वाले पार्क बनाए जाएं। पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट ने भी देश में चार ऐसे पार्क बनाने का निर्णय लिया।
मुख्यमंत्री का संबंधित केंद्रीय मंत्री को लिखा गया पत्र भी इसी संदर्भ में है। अपने पत्र में मुख्यमंत्री ने लिखा है,“संज्ञान में आया है कि केंद्र सरकार देश में ऐसे पार्क स्थापित करने के बारे में सोच रही है। उप्र में लखनऊ और नोएडा इसके लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं। मसलन लखनऊ में केंद्र के चार दवा अनुसंधान केंद्र हैं। इनके शोध का स्तर बेहद स्तरीय है। इनके द्वारा कई रोगों की उच्च कोटि की दवाएं और चिकित्सकीय उपकरण बनाए भी जा रहे हैं। इसके अलावा गौतमबुद्ध नगर नोएडा का शुमार देश के विकसित औद्यौगिक क्षेत्रों में होता है।
वहां जेवर में अंतराष्ट्रीय ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बन जाने से नियार्त भी आसान हो जाएगा। सरकार की नई औद्योगिक और फार्मा नीति भी निवेशकों के बेहद मुफीद है। प्रधानमंत्री की मंशा अगले पांच वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रीलियन डॉलर बनाने का है। उसी क्रम में उसी अवधि में हम उप्र की अर्थव्यवस्था को एक ट्रिलियन डॉलर करना चाहते हैं। लिहाजा उप्र को प्रस्तावित चार बल्क ड्रग्स या मेडिकल डिवाइस पार्क आवंटित करने का कष्ट करें।”